एक युग का अंत: अटल बिहारी वाजपेयी का निधन

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एक बेहतरीन इंसान, कवि, भारत रत्न प्रधामंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी का आज निधन हो गया। ये एक ऐसे सक्शियत थे जिन्हें पक्ष- विपक्ष के सभी लोग प्यार करते थे। उनके नेतृत्व और भाषण कला का मुकाबला न था, राजनीति के आजातशत्रु , भीष्मपितामह और हम सभी के लिए प्रेरणास्रोत रहें। अटल जी पहले विदेश मंत्री थे जिन्होंने ने संयुक्त राष्ट्र संघ में हिन्दी में भाषण देकर देश का मान बढाया।

अपना जीवन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक के रूप में आजीवन अविवाहित रहने का संकल्प लेकर प्रारम्भ करने वाले वाजपेयी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार के पहले प्रधानमन्त्री थे, जिन्होंने गैर काँग्रेसी प्रधानमन्त्री पद के ५ साल बिना किसी समस्या के पूरे किए। वाजपयी जी कवि, पत्रकार और प्रखर वक्ता थे। सफल परमाणु परीक्षण ये अटल जी के कार्यकाल में ही संभव हुआ, कारगिल युद्ध कौन भूल सकता हैं, जब हमारी सेना ने पाकिस्तान को धूल चटा दी।

प्रधानमंत्री के रूप में अटल जी का कार्यकाल –

1.भारत को परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र बनाना।

2.पाकिस्तान से संबंध सुधार की पहल

3. कारगिल युद्ध

4.स्वर्णिम चतुर्भुज योजना

अटल जी की प्रमुख रचनायें –

1.मेरी इक्कावन कविताएं

2. मृत्यु या हत्या

3.संसद के तीन दशक

4.अमर आग हैं

5.अमर बलिदान

अटल जी बहुत लंबे समय तक सांसद रहे और नेहरू व इंदिरा गांधी के बाद सबसे लंबे समय तक गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री रहें। वह पहले प्रधानमंत्री थे जिन्होंने गठबन्धन सरकार को स्थापित किया वरन सफलतापूर्वक संचालित भी कियाऔर देश के दसवें प्रधानमंत्री बने। अटल जी को उनके द्वारा लिखी गई कविता से श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं –

दोस्तों राजनीति में आज एक युग का अंत हो गया, ऐसे लोकप्रिय इंसान विरले ही पैदा होते हैं जो सारा जीवन राष्ट्र को समर्पित करते हैं आप हमसब के दिल में सदा रहेंगे, भावभीनी श्रद्धांजलि😢😢

शादी में इतना झूठ तो चलता है(कड़वी सच्चाई).

रमा मोहन सिंह की लाडली बेटी थी, रमा ने हाल ही में बी०एड० की परीक्षा उतीर्ण की थी। रमा का एक बड़ा भाई था, जो मुम्बई जॉब करता था। रमा के पिताजी उसके लिए लड़का देख रहे थे लेकिन बात बन नहीं रही थी. एक दिन उनके मित्र शिव शंकर मिश्रा ने अपने एक मित्र से मिलवाया जिनका भतीजा शादी के योग्य था जो की पूना में इंजीनियर था। खैर, धीरे-धीरे बात आगे बढने लगी, एक- दूसरे की कुंडली को मिलाया गया. अच्छे गुणों से कुंडलियों का मेल हो गया। लड़के के पिताजी किसान थे और माँ गृहणी थी इसलिये लड़के के फूफाजी को ही भतीजे की शादी की जिम्मेदारी दी गई थी।

अब दोनों के परिवार वालो ने एक -दूसरे को लड़की और लड़के की फोटो भेजी. लड़के की दो फोटो लड़की के घर आई, लड़का लम्बा-चौड़ा था, नाक -नक्श भी अच्छे थे, गोरा – चिठ्ठा भी था, लेकिन दोनों फोटो में लड़के ने आँखों में स्टाइलिश काला चश्मा लगा रखा था। रमा की माँ ने अपने पति से कहा की कोई ऐसा फोटो मंगवाईए, जिसमें लड़के की आँखे भी दिखाई दे. रमा के पिता ने ये बात लड़के के फूफाजी को कही, तो उन्होंने कहा ठीक है भेज दूँगा। दूसरे दिन रमा के पिताजी अपने मित्र के साथ लड़के के घर गए, फूफाजी पहले से ही वहाँ मौजूद थे, रमा के पिता और उनके दोस्त की खुब आवाभगत की गई. लड़के की तरह-तरह की फोटो दिखाई गई ,लेकिन ऐसी कोई फोटो उनके पास नहीं थी जिसमें लड़का बिना चश्मा के हो, सबने बोला कि आजकल के लड़कों को तो आप जानते ही है कितने स्टाइलिश हो गये हैं कि बिना गोगल्स(चश्मा) के फोटो खिचवाते ही नहीं, फूफाजी ने कहा – अरे लड़का आएगा तब देख लीजिएगा, खैर रमा के पिता को घर-परिवार, जमीन-जायदाद, हर चीज पसंद आई।

लड़के के फूफाजी ने लड़की को देखने की इच्छा जाहिर की, तो उनकी इच्छा का सम्मान करते हुए, उन्हें रमा से मिलवाया गया, उन्हें लड़की अच्छी लगी, तय हुआ की जब लड़का छुट्टियो में आएगा तब सभी परिवार वाले साथ मिलकर लड़की को देखेंगे, रमा के पिता इस बात के लिए राजी हो गये, लेकिन उनलोगों ने एक बार भी नहीं कहा की आप लड़का देख आइए, खैर रमा के पिता ने खुद उन लोगों से लड़के का पत्ता लेकर अपने बड़े बेटे को लड़के से मिलने को कह दिया। रमा का भाई एक-दो दिन बाद पूना लड़के से मिलने गया, लड़के ने एक नियत स्थान पर रमा के भाई को बुलाया. दूसरे दिन रमा का भाई नियत जगह पहुंचा, कुछ देर बाद लड़का भी वहाँ पहुंचा। लड़के को देखते ही रमा का भाई हैरान रह गया, क्योंकि पहली बार लड़के को बिना चश्मा के देखा ,हैरान इसलिए हुआ क्योंकि लड़के की एक आँख पूरी तरह खराब थी। लड़के ने बताया की रोड एक्सीडेंट में उसकी एक आँख चली गई थी जबकि ये बात लड़के के परिवार ने अभी तक नहीं बताई थी।

रमा के भाई ने ये सारी बातें अपने पिता को बताई, सभी हैरान रह गए , अब उनकी समझ मे आया कि लड़के के परिवार वालों ने उन्हें चश्मे वाली ही फोटो क्यों दी. कुछ देर के लिए सभी सदमें मे पड़ गए, कोई इतना बड़ा झूठ कैसे बोल सकता हैं,रमा के पिता ने ये बाते अपने दोस्त शिवशंकर मिश्रा को बताया, उन्होंने जब लड़के के फूफाजी (जो की उनके दोस्त थे) को डाँटते हुए कहा की शादी-ब्याह के मामले में कोई इतना बड़ा झूठ बोलता है क्या, तो लड़के के फूफाजी बड़ी ही बेशर्मी के साथ ये कहते हैं कि शादी-ब्याह मे इतना झूठ तो चलता ही हैं. इस पर मिश्रा जी ने कहा – आप जैसे घटीया सोच के लोगों के कारण लड़कियों की जिंदगी बरबाद होती हैं, तुम्हारा और मेरा रिश्ता भी इस रिश्ते के साथ यही खत्म होता हैं।

सबको तसल्ली बस इस बात की थी की उनकी लड़की की जिंदगी बर्बाद होने से बच गई।

उम्मीद है आपको मेरी ये कहानी पसंद आई होगी, मेरी आगे की कहानियों को पढने के लिये मुझे फॉलो करे।

“धन्यवाद”

परदेसियों को है इक दिन जाना ( अभिनेता शशि कपूर का निधन )

महान अभिनेता, निर्माता, निर्देशक शशि कपूर का आज निधन हो गया । शशि कपूर तीन हफ्तों से अस्पताल में भर्ती थे, लंबी बीमारी के बाद आज उनका निधन हो गया। आइये शशि कपूर जी को उनके फ़िल्मों के द्वारा याद करते हैं। शशि कपूर, पृथ्वीराज कपूर की तीसरी संतान थे। ये अपने तीनों भाइयों मे सबसे खुबसूरत थे. इन्होंने हिन्दी के साथ साथ अंँग्रेजी फिल्मों में भी काम किया था। हालांकि शशि कपूर फ़िल्म उद्योग में लंबे समय सक्रिय नहीं थे. लेकिन जब जब फूल खिले (1965), वक्त (1964), अभिनेत्री (1970), दीवार, त्रिशूल , हसीना मान जाएगी (1968) जैसी फ़िल्में आज भी पसंद के साथ देखी जाती हैं।

बतौर निर्माता भी शशि कपूर ने बॉलीवुड की कुछ बेहतरीन फ़िल्मों का निर्माण किया था. इनमें जुनून , कलियुग (1980), 36 चौरंगी लेन , विजेता , उत्सव जैसी फिल्मों का नाम लिया जाता है. अपनी फिल्म करियर की शुरुआत इन्होंने राज कपूर निर्मित आग और आवारा फिल्मों मे उनके बचपन की भूमिका निभाई थी। बतौर हीरो धर्मपुत्र उनकी पहली फिल्म थी। हालांकि सफलता उन्हें जब जब फूल खिलें ( फिल्म) से मिली।

इन्हें 2011 मे पद्म भूषण 2015 मे दादा साहेब फाल्के अवार्ड से सम्मानित किया गया। दीवार’ फिल्‍म में उनका डायलॉग ‘मेरे पास मां है’ आज भी लोगों की जुबान पर रहता है.शशि कपूर आखिरी बार साल 1998 में फिल्‍म ‘जिन्‍ना’ में नजर आए थे. यह पाकिस्‍तान के पहले प्रधानमंत्री मोहम्‍मद अली जिन्‍ना की बायोपिक थी.

शशि कपूर के फिल्मों के यादगार गाने जो आज भी बेहद पसंद किये जाते हैं –

1. परदेसियों से ना अखियाँ मिलाना – ( जब जब फूल खिले)

2. चले थे साथ मिलकर चलेंगे साथ मिलकर – (हसीना मान जाएगी)

3. ले जाएंगे ले जाएंगे दिलवाले दुल्हनियां ले जाएंगे – ( चोर मचाएं शोर)

4. कह दू तुम्हें या चुप रहू दिल मे मेरे आज क्या है – (दीवार)

5. मोहब्बत बड़े काम की चीज है – (त्रिशूल)

महान अभिनेता को श्रद्धांजलि, आप हमेशा हमारे दिल में रहेंगे।

R.I.P ” शशि कपूर”

माँ बनने की लालसा ( सच्ची घटना ) ।

कल ही की बात थी , बच्चे के आने की खुशी मे कमला ने सभी को दावत दी थी। सारे रिश्तेदार और दोस्तों को बुलाया था। सभी उसकी खुशी में शामिल हुए सबने बच्चे को अपना प्यार और आशीर्वाद दिया लेकिन आज उसके घर मे सन्नाटा पसरा था, कमला चुपचाप एककोने मे बदहवास सी बैठीं थी। कमला अपने भाग्य को कोस रही थी, उसके साथ हुए हादसे का आकलन कर रही थीं की उससे कहाँ चूक हुई , उसके ही साथ ही ऐसा क्यों हुआ। बारह साल की तपस्या के बाद मिली खुशी पलभर मे क्यों छीन गई। दरलसल कमला की शादी को बारह वर्ष हो गये थे और दो बार गर्भवती भी हुई लेकिन हाईब्लडप्रेशर के कारण दोनों बार कमला माँ बनने के सुख से वंचित रह गई।

कमला स्कूल टीचर थी, उसके पति बैंक मैनेजर थे । हर तरह का सुख था उसके पास लेकिन सबसे बड़े सुख से वंचित थी ,उसे बस एक बच्चे की लालसा थी, लेकिन भगवान को कुछ और ही मंजूर था। कमला को बच्चे के लिए जो करने को कहता , वो सब करती लेकिन उसका कुछ परिणाम नहीं निकलता। विमला और कमला बचपन की सहेलियाँ थी दोनों एक -दूसरे से अपने दिल की बात करती।कमला, विमला के बच्चे से बहुत प्यार करती थीं। एक दिन विमला ने कमला से कहा – तुम बच्चा गोद क्यों नहीं ले लेती। तुम्हे माँ बनने का सुख मिल जाएगा और किसी बच्चे की जिंदगी भी सवर जाएगी. कमला को विमला का यह सुझाव बहुत ही अच्छा लगा, उसने इस बारे में कभी सोचा ही नहीं था। खैर कमला ने इस बात को अपनी पति को बताया, उन्हें भी यह सुझाव अच्छा लगा।

छह महीने बाद कमला और उसके पति को उनके एक मित्र की सहायता से एक बच्चा मिला लेकिन वह बच्चा प्रीमैच्योर था , इस बारे में उनके मित्र ने बताया था लेकिन कमला को माँ बनने की इतनी लालसा थी की वह उस बच्चे को गोद लेने को तैयार हो गई, खैर बच्चे को घर ले आए लेकिन प्रीमैच्योर होने के कारण उसे दस दिन अस्पताल में डाक्टरों के देख-रेख मे रखना पड़ा क्योंकि बच्चा बहुत ही कमजोर था। दस दिन बाद कमला उसे घर ले आई, एक महीने बाद बच्चे के नामकरण की पार्टी दी गई जिसमें सबने बच्चे को प्यार और आशिर्वाद दिया और उसके उज्जवल भविष्य की कामना की, सबकुछ ठीक चल रहा था लेकिन एक दिन अचानक बच्चे की तबीयत बिगड़ने लगी। बच्चे को डॉक्टर के पास ले जाया गया लेकिन बच्चे को बचाया नहीं जा सका। कमला उसी शोक मे डूबी हुई थी लेकिन कमला ने हार नहीं मानी।

आज उसका घर बच्चों की शरारतों से गूंज रहा है। उसने अपने घर मे ही एक छोटा सा हाँस्टल खोल लिया है और उनकी पढाई का भार भी उठाया है, कमला उन बच्चों को बहुत प्यार करती हैं। देर से ही सही लेकिन भगवान ने उसकी माँ बनने की इच्छा को पूरी की।

आपको मेरी ये कहानी कैसी लगी मुझे कमेंट कर जरूर बताए और मेरी आगे की कहानियों को पढने के लिए मुझे फाँलो करें।

” धन्यवाद”

पढी- लिखी नहीं ,कामकाजी बहु चाहिए ( सच्ची घटना )

नवल की पोस्टिंग रेलवे में टिकट कलेक्टर के पद पर हुई। नौकरी लगते ही नवल के घर रिश्ते आने लगे।नवल का परिवार गांव में रहता था ,उसके पापा किसान थे और मां गृहणी थी । माँ को बहु कामकाजी चाहिए थी क्योंकि नवल की मां के अनुसार बहु, घर – परिवार , बच्चे और सास-ससुर का ध्यान रखने वाली होनी चाहिए । अगर कोई कहता की तुम्हे पढ़ी-लिखी लिखी बहु नहीं चाहिए तो वो साफ इंकार कर देती ,उनका मानना था कि पढ़ी -लिखी बहु जबान लड़ाती है और हमें कौन सी नौकरी करवानी है ,मुझे तो बस घर संभालने वाली बहु चाहिए।

रीता नवल और उसके परिवार के लिए उपयुक्त लड़की थी क्योंकि वो नवल की मां की सारी उम्मीदों पर खरी उतरी ।कुछ ही दिनों में नवल की शादी रीता से हो गई।शादी के एक साल बाद रीता ने लड़की को जन्म दिया। रीता घर का सारा कामकाज करती और सास – ससुर बच्ची को खिलाते ।देखते ही देखते बच्ची( जिसका नाम पायल रखा था ) पाँच साल की हो गई । एक दिन पायल की आँख और कान मे इन्फेक्शन हो गया । नवल शहर में नौकरी करता था , इसलिए रीता अपने सास ससुर के साथ डाक्टर के पास पायल को दिखाने गई ।डॉक्टर ने पायल को देखा और कुछ आँख और कान मे डालने वाली दवाईयां लिख दी , कंपाउंडर ने रीता को दवा कितनी बार डालनी हैं ,समझा दी । रीता पढी- लिखी नहीं थी और दोनों दवाईयां दिखने में लगभग एक सी थी । अतः दूसरे दिन से रीता ने कान की दवा आँख में और आँख की दवा कान में डालनी शुरू कर दी ।

एक दिन पायल स्कूल से घर आई और माँ से कहने लगी – मम्मी तुम टीचर से कह दो ना कि मुझे आगे वाली बेंच पर बैठाए मुझे बोर्ड पर लिखी बातें साफ दिखाई नहीं देती , कुछ दिन से रीता भी टीवी नजदीक से देखने पर पायल को डांट रही थी ,लेकिन अब जाकर रीता को बात समझ में आई। दुसरे ही दिन रीता के ससुर पायल को लेकर डाक्टर के पास गए, डॉक्टर ने पायल की आँखों की जाँच की और बताया की पायल की आँखों की रौशनी बहुत कम हो गई हैं डॉक्टर ने उसके ससुर से पूछा कि आप इसके आँखों में कोई दवा डाल रहे थे क्या ? रीता के ससुर ने कुछ दिन पहले आँखों और कान की दवा के बारे में बताई , तब डॉक्टर ने बताया कि आपने दवा गलत तरीके से डाली हैं । कान की दवा आँखो में डाली है इसलिए कान की एसिडिक दवा से लागातार आँखों को नुकसान पहुंचा है, जिससे बच्ची की एक आँख की रौशनी लगभग चली गई हैं। रीता के ससुर ने कभी सोचा भी नहीं था कि अशिक्षित होने का इतना बड़ा मोल चुकाना पड़ेगा । अब तो पूरे गाँव में ये चर्चा का विषय बन गया कि फलाना की बहु के गलत दवाई देने से बच्ची की आँख की रौशनी चली गई ।

रीता के परिवार को इस बात की बहुत ग्लानि हुई और उन्हें तथा गांव के काफी परिवारों ,जो खासकर के बेटियों के पढाई के खिलाफ थे उन्हे भी पढाई के महत्व का एहसास हुआ । गाँव के सभी लोगों एक ही बात कर रहे थे की अगर नवल की पत्नी पढी- लिखी होती तो आज उसकी बच्ची को अपनी आँखें न गवानी पड़ती ,रीता की गलती की सजा उसकी बच्ची को भोगनी पड़ी । अत: इस एक घटना से गांव के सभी लोगों को सबक मिल गया । रीता को पढाई का महत्व समझ मे आ गया था अत: आगे चलकर उसने पायल को शिक्षित करने मे उसका साथ दिया और पायल ने अपनी पढाई पूरी की। हालांकि पायल की शादी में बहुत दिक्कतें आई, लेकिन उसके शिक्षित होने के कारण उसकी शादी अच्छे परिवार में हो गई ।

इस घटना से यह पता चलता है कि शिक्षा हमारे जीवन, रोजमर्रा के कामों मे कितना महत्व रखता हैं । खासकर लड़कियों को शिक्षित करना अत्यंत आवश्यक हैं ,इसलिए अधिक से अधिक लड़कियों को शिक्षित करने मे और जागरूकता फैलाने में सहयोग करें ।

उम्मीद है कि आपको मेरी यह कहानी अच्छी लगी होगी, मेरी आगे की कहानियों को पढने के लिए मुझे फाँलो करें ।

सबक (सच्ची घटना )

अभी शादी को आठ साल ही तो हुए थे, सारी खुशियाँ एक पल मे बिखर गई . मीना अभी भी सदमे में ही थी , उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था बेसुध सी एक कोने मे बैठी थी . मनोज दो महीने पहले ही तो पंजाब (जहाँ वह कपड़ें की मिल में काम करता था) गया था । दस दिन से उसे बुखार आ रहा था पर दवाई लेने से ठीक था , इसी उधेड़बुन मे मीना खुद से ही बातें किए जा रही थी ,ऐसा कैसे हो सकता है परसों ही तो बात हुई थी ,सब झूठ बोल रहे हैं । उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि उसके साथ ऐसा कुछ हुआ है, आज सुबह ही ये मनहूस खबर आई थी।

मीना की शादी आठ साल पहले हुई थी ,उसका पति पंजाब काम करता था , वो सात लोगों के बीच इकलौता कमाने वाला था । मीना सास-ससुर और तीन देवरो के साथ गाँव में ही रहने लगी । बाद मे मनोज उसे अपने साथ पंजाब ले गया . शादी के दूसरे साल मीना एक लड़की की माँ बनी । गाँव में अभी भी लड़कों को ही तवज्जों दी जाती हैं, (सबका यही मानना होता हैं कि लड़कियाँ तो परायी होती हैं और लड़के वंश चलाते हैं और बुढापे का सहारा होते हैं , भले ही लड़के बुढापे का सहारा बने या ना बने ,आशा तो यही की जाती हैं । हद तो तब होती हैं जब लड़के अपने माँ -बाप का अपमान करते हैं उनका अनादर करते हैं ,तब भी दूसरे बुजुर्ग यही कहते हैं कि क्या हो गया अगर लड़का कुछ बोल दिया तो ,खिला तो वही रहा हैं । अब इसे तो खुद को दिलासा देना ही कहेंगे ) तो मीना की सास को भी यही आस थी लेकिन लड़की हुई तो मीना की सास ने कहा कोई बात नहीं अगली बार लड़का ही होगा । दूसरी ,तीसरी और यहां तक चौथी बार भी लड़की ही हुई , लड़के की आस मे जनसंख्या मे बढोतरी होती गई , ये बात किसी को समझ नहीं आ रही थी ,यहां तक पढी- लिखी मीना को भी नहीं। लेकिन मीना की सास की उम्मीद अभी भी बाकी थी खैर पाचँवी बार मीना की सास की आस (लड़का) पूरी हो गई । सारे गाँव में लड्डू बाँटे गए।

आश्चर्य की बात तो ये थी की मीना अपने परिवार मे सबसे अधिक शिक्षित थी फिर भी उसने इन सब बातों का विरोध नहीं किया क्योंकि कही न कहीं मीना भी इन सब बातों की पक्षधर थी । जिस समाज और परिवेश में आप रहते हैं तो उसका प्रभाव पड़ना लाजमी हैं । मीना भी वैसे ही समाज की परवरिश थी , खैर लड़का मूल नक्षत्र मे पड़ा था (कुंडली के अनुसार) जिसे पिता के जीवन के लिए संकट माना जाता हैं इसलिए इसके निवारणनार्थ सभी जल्दी पूजा करा लेते हैं पर अब मीना का परिवार इतना बड़ा हो चला था की पैसे की तंगी हो गई थी , इसलिए यह निर्णय लिया गया की पूजा कुछ महीने बाद करा लेंगे। मनोज उस समय वही था अगले हफ्ते पंजाब चला गया ,उसे गये अभी दो महीने ही हुए थे जब यह मनहूस खबर आई की डेंगू के कारण उसकी मौत हो गई । मीना के लड़के को सभी ने मिलकर मनहूस करार दे दिया, जिसमे उस मासूम बच्चे की कोई गलती नहीं थी ,वो इस दुनिया के रीती-रिवाज को क्या जानता था कि यहां कब किसको मनहूस और कब भाग्यशाली करार दिया जाता हैं. वो इन सभी ढकोसलो से अंजान खेलने मे मग्न था ।

धीरे – धीरे मीना ने इस बात पर यकीन कर लिया मनोज अब उसके साथ नहीं है और उसने जो इतनी बडी भूल की हैं उसका प्राश्चित उसे ही करना होगा कुछ ही दिनों बाद सारे रिश्तेदारो ने अपना रंग दिखा दिया। सबने उसका साथ छोड़ दिया क्योंकि इतने बड़े परिवार (छ: सदस्यो ) का बोझ उठाना किसी के लिए संभव न था। मीना अपने मायके आ गई लेकिन उनकी भी आर्थिक स्थिति अच्छी न थी अतः वहा भी उसका गुजारा संभव न था.अतः उसने नौकरी करने की सोची ,बहुत प्रयास के बाद शिक्षिका के पद पर उसकी नियुक्ति हुई ( जो की अभी अस्थायी था) । अत: उसने अलग किराये का मकान ले लिया जहां वो अपने बच्चों के साथ रहने लगी। संकट मे उसका साथ किसी ने नहीं दिया, सब यही कहते कि इतने बड़े परिवार का भार उठाना संभव नहीं हैं(जो की सही बात थी) । लेकिन खुशी की बात यह की आज मीना अपने सभी बच्चों को शिक्षित कर रही हैं । उसने अपने भूल से सबक लिया और अपने दम पर अपने बच्चों का अच्छे से पालन – पोषण कर रही हैं ,इतने बड़े संकट मे उसने अपना आत्मविश्वास नहीं खोया । इसके लिए मीना प्रशंसा के योग्य हैं ।

मीना के एक गलत फैसले से उसे सभी ने नकार दिया। सब यही कहते की तुमने पढी – लिखी होकर भी ऐसी बड़ी गलती की ।आज अगर तुमने परिवार नियोजन किया होता तो शायद तुम्हारी ऐसी स्थिति न होती । आपको क्या लगता हैं इसके लिए सिर्फ मीना जिम्मेदार थी या कहीं न कहीं वो समाज था ,जिस समाज में वह पली – बढी थी ।

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“धन्यवाद”

बेटी से प्यारा दामाद ।

शादी के बाद आशा पहली बार मायके आ रही थी उसके घर में पूरे जोर शोर से तैयारियां चल रही थी क्योंकि बेटी के साथ दामाद जी पहली बार ससुराल आ रहे थे, उनके स्वागत में कोई कमी नहीं रहनी चाहिए थी इसलिए आशा की माँ सारी तैयारियों का जायजा ले रही थी. कुंती देवी खुद बाजार जाकर अच्छे ब्रांड की जो की दामाद जी का पसंदीदा था, उस ब्रांड के कपड़ें खरीद लाई थी , उन्होंने ने इस बारे मे आशा से पहले ही पूछ लिया था । अब बारी थी रसोई घर का जायजा लेने की , रसोईयाँ खाना बना रहा था , उसे टोकते हुए आशा की माँ ने कहा- अरे ! ये क्या कर रहा हैं और मेवे डाल खीर मे मुँह मे चावल कम मेवे अधिक आने चाहिए , दामाद जी क्या कहेंगे । हर पकवान लजीज बननी चाहिए ,समझा। इतना कहकर कुंती देवी दूसरे काम मे लग गयीं. घर का सबसे बड़ा कमरा दामाद जी के लिए तैयार किया जा रहा था , ताकि वो अच्छे से रह सके ।

सारी तैयारियां लगभग हो चुकी थी अब बस बेटी और दामाद का इंतजार था । आशा के पिता और भाई उन्हें लेने रेलवे स्टेशन गए थे . कुछ ही देर बाद गाड़ी दरवाजे लगी ,कुंती देवी आरती की थाली लेकर बाहर आई , बेटी-दामाद की आरती उतारी ,उनका स्वागत कर उन्हें घर के अंदर ले आई। उनका हाथ – पैर धुलाया और थोड़ा हाल -चाल लेने के बाद उन्हें खाने की मेज पर ले गई , सारे पकवान बेटी और दामाद जी के सामने परोसा गया सब दामाद को खिलाने मे लग गए ,आशा सब देख रही थी मन ही मन खुश हो रही थी लेकिन उसे थोड़ी जलन भी हो ही थी, क्योंकि उसकी ओर कोई ध्यान ही नही दे रहा था . बाद मे उसने इस बात की शिकायत माँ से की तो माँ ने कहा दामाद जी पहली बार घर आए हैं उनका ध्यान रखना जरूरी था ना और मेरे लिए जैसे तुम और आकाश हो, वैसे ही रजत जी हैं। माँ ने आशा को छेड़ते हुए कहा कि बेटी से प्यारा दामाद होता हैं ।

कुछ दिन रहने के बाद बेटी- दामाद चले गए । आशा समय – समय पर माँ का हाल – चाल लेती रहती, लेकिन प्रिय दामाद जी ने भूलकर भी आशा के घरवालों का हाल- चाल न लेता था वो बस अपने परिवार मे ही लगा रहता था , यह सब देखकर आशा को थोड़ी तकलीफ होती थी कि जैसे उसने रजत के परिवार को अपना लिया है वैसे रजत उसके परिवार को क्यों नहीं अपना सकता । एक दिन आशा की माँ ने उसे फोन किया और पूछा दामाद जी तुझे मानते हैं ना और वो तुझसे खुुुश हैं ना ,आज अचानक माँ के बातें सुन आशा ने कहा- ऐसे क्यों पूछ रही हो क्या बात हो गई। तब आशा की माँ ने कहा नहीं तेरी शादी को पाँच साल हो गए, लेकिन रजत जी कभी हमारा हाल – चाल नहीं लेते, हमसे कोई गलती हो गई हैं क्या। माँ की बातें सुनकर आशा को आज बहुत ही तकलीफ़ हुई ।आशा ने एक दिन रजत से इस बारे मे पूछा था कि आखिर ऐसी क्या बात है कि तुम कभी भी मेेरे घरवालों से बात नहीं करते ,रजत हमेेशा यह कहकर बात टाल देता कि ऐसी कोई बात नहीं है ।

शादी को पाँच साल हो गये थे लेेकिन आशा अभी तक रजत को समझ नहीं पाई थी ,वो लाख कोशिश करती कि रजत उससे हर बात शेेेयर करे लेेेकिन रजत नहीं करता था । कभी – कभी आशाा माँ से इस बात को कहती तो माँ यही कहती कोई बात नहीं दामाद जी तुझे प्यार करते हैं ना ,बस हमें और कुछ नहीं चाहिए तु खुश समझ हम भी खुश है । दरलसल रजत का परिवार पुराने खयालों का था ,उनके यहाँ ससुराल मे बेटा दिलचस्पी ले ये उनके पिता को पसंद न था , लेकिन अपना दामाद दिलचस्पी लेता तो उन्हें अच्छा लगता था, ननदें जीजा से खुब हँसी मजाक करती . रजत ये सब देखते लेकिन उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता था क्योंकि उन्होंने अपने घर में यही सीखा था। रजत अपने पापा के लाडले थे।

आपने “mamma’s Boy’s”तो सुना होगा लेकिन यहाँ रजत “Papa’s boy the” जो उनके पिता कहते वो वहीं करते लोग अपनी सास से परेशान रहते हैं यहाँ आशा अपने ससुर से परेशान थी। ये हमारी समाज की विडंबना है कि बेटी तो पराये घर जाकर सबको अपना लेती हैं, लेकिन लड़कों को यह शिक्षा दी जाती हैं कि उसका अपना परिवार ही अपना हैं,लड़की के परिवार से क्या लेना -देना (लेना तो है ,देना कुछ नहीं)। ये मानसिकता पीढियों से चली आ रही हैं शायद यही शिक्षा और सोच रजत की थी जो उसे चाहकर भी आशा के परिवार से घुलने- मिलने से रोक रहा था। मैं ये नहीं कहुँगी की सभी एक जैसे हैं , मैंने ऐसे भी दामाद देखे हैं जो सास- ससुर को भी माँ -बाप की तरह मानते हैं ,लेकिन ऐसे लोगों की संख्या बहुत कम हैं। समय के साथ बदलाव अत्यंत आवश्यक हैं लेकिन कुछ लोग बदलाव से अपने आप को असुरक्षित महसूस करते हैं। हम बदलेंगे तभी दुनिया बदलेगी।

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” धन्यवाद”

रंग बदलते रिश्ते….।

गर्मियों की छुट्टियाँ शुरू हो चुकी थी ,नैना काफी खुश थी क्योंकि इस बार वो छुट्टीयों मे वह अपनी चाची के घर दिल्ली जा रही थी।उसकी चाचा के नये घर की पूजा थी । दो दिन बाद नैना मम्मी- पापा के साथ दिल्ली चली गई, वहाँ परिवार के सभी लोगो से मिलना- जुलना हुआ ,नैना का अपने भाई-बहनों के बीच खुब मन लग रहा था. गृहप्रवेश की पूजा अच्छे से हो गई, धीरे-धीरे सभी लोग वापस जाने लगे . नैना भी दूसरे दिन जाने वाली थीं ,मगर चाचा ने यह कहकर रोक लिया कि अभी तो नैना की लंबी छुट्टी हैं इसे तो अभी दिल्ली घुमाना हैं तो नैना को यही रहने दीजिए । नैना के पापा राजी हो गए ,लेकिन नैना कभी कहीं दो दिन भी अकेली नहीं रही थीं ,थोड़ी घबराई हुई थी नैना की मम्मी ने समझाया कि चाची का घर अपना ही घर है ना फिर डरने की क्या जरूरत है । खैर नैना के मम्मी- पापा वापस लौट गए ।

नैना के चाचा – चाची दो- चार दिन मे नये घर मे शिफ्ट कर गए। घर सेट करने मे नैना ने भी काफी मदद की। चाची के तीन छोटे बच्चे थे, तीनों ही लड़के थे । नैना के चाचा सुबह आँफिस जाते तो देर रात लौटते .नैना को दो- चार ही दिन में घर की याद सताने लगी ,चाची बस अपने बच्चों मे ही लगी रहती ,जो फूल उनके मुख से नैना के लिए बरसते वो धीरे- धीरे बंद होने लगे .नैना ने खाना खाया या नहीं, चाची को इससे कोई मतलब नहीं था।एक दिन अचानक चाची ने नौकरानी को काम से हटा दिया. अब नैना से ही घर के काम करवाने लगी ,खाना भी बनवाने लगी. नैना पन्द्रह साल की बच्ची ही तो थी वो इतना काम करके थक जाती थीं । दिल्ली आए उसे दस दिन से अधिक समय हो गया था , लेकिन जिस चाचा ने उसे दिल्ली घुमाने के लिए रोका था वो एक दिन भी उसे घर से बाहर नहीं ले गए, नैना को बस बच्चों और घर के कामों मे ही लगा रखा था।

नैना की चाची एक दिन उसे घर के पास वाले पार्क में ले गई और कहा – नैना तुम यही रहो हम तुम्हारा यही स्कूल मे नाम लिखा देंगे ,यही पढाई करना। नैना ने कुछ उत्तर नहीं दिया. जब नैना की माँ का फोन आता तो वह सबके सामने घर वापस आने के बारे मे कह भी नहीं पाती थी ,क्योंकि फिर चाची कहने लगती की तुम्हें यहाँ क्या तकलीफ़ हैं। कुछ दिन बाद नैना के चाचा के दोस्त विक्रम के घर दावत थी,नैना की चाची उसे भी साथ ले गयी रास्ते मे चाची ने बताया की उनकी भांजी भी उनके साथ रहती हैं। वहाँ जाकर नैना ने देखा चाय – नाश्ता वही (भांजी) बना कर लाई । चाची ने नैना को बच्चों के पास बैठने को बोला जहां वो खेल रहे थे और कुछ दूरी पर नैना की चाची और विक्रम की पत्नी बातें करने लगी । बातों- बातों मे विक्रम की पत्नी ने कहा, अच्छा किया सुधा जो तुमने भी काम करने के लिए किसी को गाँव से बुला लिया । मैने भी अपनी भांजी को रखा हैं और यही सरकारी स्कूल में नाम लिखवा दिया है । मुझसे से नौकरानीयो के नखरे नही उठाए जाते हैं । एक बार नौकरानी को डांट दो तो वो भागने की धमकी देने लगती हैं और कम से कम ये अपने काबू मे तो रहती हैं। नैना उनकी सारी बातें सुन रही थी।

घर वापस आने के बाद नैना को चाची की कही बातों का मतलब समझ आ रहा था ( यही रहो तुम्हारा स्कूल में दाखिला करा देंगे) । मौका मिलते ही उसने अपनी माँ को फोन किया और वापस घर आने के लिए बोला. पाँच दिन बाद नैना के पापा उसे घर लेकर आ गए। नैना ने मम्मी से सारी बाते बताई ,जिसे सुनकर उसकी मम्मी हैरान हो गई, उनका तो रिश्तों से विश्वास ही उठ गया। नैना की चाची इतनी छोटी सोच की होगी उन्होंने सोचा भी नहीं था . फिर भूल कर भी नैना को वहां नहीं भेजा।

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सोशल मीडिया का किशोरों पर बढता प्रभाव.

सोशल नेटवर्किंग के द्वारा पूरी दुनिया जुड़ी हुई हैं। इसके अच्छे उपयोग भी हैं और दुरूपयोग भी। आज तकनीक इतनी आगे बढ गई हैं कि आप लाख रोक लगा लो बच्चे , खासकर के किशोर , कहीं न कहीं से सोशल साइट जैस- फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम, स्नैपचैट आदि पर अपने अकाउंट बना ही लेते हैं और फिर फ्रेंड बनाना शुरू कर देते हैं ।देश- विदेश से फ्रेंड रिक्वेस्ट आते हैं और ये सबको अपना दोस्त बना लेते हैं जिन्हें वो जानते हो या नहीं और फिर साइबर क्राइम की शुरूआत यही से होती हैं. सोशल साइट्स पे ही गर्लफ्रैंड बनते हैं ब्वॉयफ्रेंड बनते है , रिश्ते इन सोशल साइटों पे ही बनते हैं टुटते हैं।

आज का बच्चा समय से पहले ही परिपक्व हो जा रहा हैं और इसमें सोशल साइट्स महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे है।खासकर किशोरावस्था ऐसी अवस्था होती हैं जब बच्चे को सही गाइडलाइन ना मिले तो बच्चा भटक जाता हैं। आजकल किशोर सोशल साइट्स पर फेमस होने के लिए , अधिक से अधिक लाइक पाने के लिए, कमेंट पाने के लिए तरह- तरह के एडवेंचरस फोटोज डालते हैं और कई बार तो फोटो खिचते वक्त तो उन्हें अपनी जान से हाथ धोना पड़ जाता हैं। आए दिन ऐसे समाचार सुनने को मिल ही जाता हैं, फिर भी किशोर इससे सबक नहीं लेते ।

सोशल मीडिया पर लोग तरह – तरह की तस्वीर शेयर करते हैं जिससे किशोरों पर काफी असर पड़ता हैं. सोशल साइट्स पर तस्वीरों मे दोस्तो को सिगरेट और शराब पीते हुए देखकर किशोर इससे दूर नहीं रह पाते । सोशल नेटवर्किंग साइटों पर इन दिनों फर्जी खातों की समस्या आम हो गई हैं, एक तरफ जहां सोशल मीडिया ने सूचना एवं प्रसार के क्षेत्र में एक उपयुक्त और अनिवार्य माध्यम की जगह ली हैं, वहीं कई बार परेशानी का सबब बन जाता हैं

अतः हर अभिभावक को चाहिए की वह अपने बच्चों को सोशल मीडिया के दुष्प्रभावों के बारे मे बताए तभी कोई किशोर आँनलाइन दुर्व्यवहार का शिकार नहीं होगें।

अंधभक्ति : बाबा या शैतान

बीते दिनों की बात हैं ,जब बाबा राम रहीम को कोर्ट ने बालात्कार का दोषी करार दिया।बस फिर क्या चारों तरफ हिंसा फैल गई. पत्रकारों की गाडियों को नुकसान पहुंचाया.तोड़-फोड़ आगजनी हुई. कितने मासूम लोगों की जान चली गई ।मुझे तो दुःख इस बात पर होती हैं आज पढे -लिखे लोग ऐसे बाबाओ के अनुयायी बनते जा रहे है उनको भगवान बना बैठे हैं .ये कैसा बाबा हैं जो भगवान के नाम पर आतंक मचा रहा है और ये कैसी अंधभक्ति हैं जो सबकुछ देखते हुए भी उनके अनुयायी उन्हें सही बता रहे हैं ।

अपना देश पहले से ही गरीबी, अशिक्षा, बेरोजगारी और आतंकवाद से झूझ रहा है।लेकिन हमारे देश के अंदर ऐसे अमानवीय तत्व है जो आतंकवादीयो से भी बढकर हैं इन जैसे बाबाओ के कारण हमारा देश पिछड़ रहा हैं ये लोगों का मानसिक स्थिति बदल रहे हैं। अभी कुछ समय पहले ऐसे कई मामले सामने आए हैं चाहे वो राधे माँ का केस हो,चाहे वो बाबा रामपाल हो या आशाराम बापू । आशाराम बापू बालात्कारी साबित हुए और पुलिस उन्हें कोर्ट ले जा रही थी तो उनके समर्थको ने तोड़- फोड़ मचा दी.सरकारी संपत्ति को जमकर निशाना बनाया. उनके समर्थक अभी भी उन्हें निर्दोष बता रहे हैं।

अनुयायी भक्तिवश उन्हें लाखों- करोड़ों का चढावा चढाते हैं और बाबा इन पैसो से ऐश की जिंदगी जीते हैं, विदेशों की यात्रा करते हैं, योगी की तरह जीवन व्यतीत करने के बजाय भोगी का जीवन जीते हैं ।अगर ये सही मे जन कल्याण के लिए काम करते तो अर्जित पूँजी गरीबों की भलाई मे लगाते।बाबाओं के ठाठ तो फिल्म स्टारों से भी कहीं ज्यादा है .महंगी गाड़ियों में घुमते है,महंगे कपड़े पहनते हैं सादा जीवन तो इनसे कोसों दूर है।

अपने देश को बाहरी लोगों से कहीं अधिक इन लोगों से खतरा हैं।शर्म आनी चाहिए ऐसे लोगों को जो भगवान को बदनाम करते हैं और दोष मैं सिर्फ इन बाबाओ को ही क्यों दू उनसे बड़े दोषी तो वो हैं जो उन्हें भगवान मानते है।ऐसे लोगों की मैं कड़े शब्दों में निंदा करती हूँ।आज कल लोग भगवान को भूलते जा रहे हैं और बाबाओ को भगवान मानने लगे हैं सारी समस्याओं का हल ये धरती वाले भगवान कर रहे है । घर से जुड़े कोई भी कार्य हो बिना बाबा की अनुमति के कुछ नहीं होता, जबतक वो हरी झंडी ना दे। उनके चित्र वाली चाबी रिंग, मोबाइल के स्क्रीन पर उनकी ही फोटो होती हैं, सारे महत्वपूर्ण पासवर्ड उन्हीं के नाम के होते हैं, घर की हर दीवार पर बाबा की ही फोटो होती हैं, मोबाइल का रिंगिंग टोन भी उनके गाने की होती हैं ।अब इसे पागलपन नहीं तो और क्या कहेंगें।

मेरी आप सबसे अपील हैं कि इतने अंधविश्वासी ना बने की बाद मे पछताना पड़े. अपने ऊपर भरोसा करे ,ऐसे ढोंगी बाबाओं का साथ कभी न दे.

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