बेटी से प्यारा दामाद ।

शादी के बाद आशा पहली बार मायके आ रही थी उसके घर में पूरे जोर शोर से तैयारियां चल रही थी क्योंकि बेटी के साथ दामाद जी पहली बार ससुराल आ रहे थे, उनके स्वागत में कोई कमी नहीं रहनी चाहिए थी इसलिए आशा की माँ सारी तैयारियों का जायजा ले रही थी. कुंती देवी खुद बाजार जाकर अच्छे ब्रांड की जो की दामाद जी का पसंदीदा था, उस ब्रांड के कपड़ें खरीद लाई थी , उन्होंने ने इस बारे मे आशा से पहले ही पूछ लिया था । अब बारी थी रसोई घर का जायजा लेने की , रसोईयाँ खाना बना रहा था , उसे टोकते हुए आशा की माँ ने कहा- अरे ! ये क्या कर रहा हैं और मेवे डाल खीर मे मुँह मे चावल कम मेवे अधिक आने चाहिए , दामाद जी क्या कहेंगे । हर पकवान लजीज बननी चाहिए ,समझा। इतना कहकर कुंती देवी दूसरे काम मे लग गयीं. घर का सबसे बड़ा कमरा दामाद जी के लिए तैयार किया जा रहा था , ताकि वो अच्छे से रह सके ।

सारी तैयारियां लगभग हो चुकी थी अब बस बेटी और दामाद का इंतजार था । आशा के पिता और भाई उन्हें लेने रेलवे स्टेशन गए थे . कुछ ही देर बाद गाड़ी दरवाजे लगी ,कुंती देवी आरती की थाली लेकर बाहर आई , बेटी-दामाद की आरती उतारी ,उनका स्वागत कर उन्हें घर के अंदर ले आई। उनका हाथ – पैर धुलाया और थोड़ा हाल -चाल लेने के बाद उन्हें खाने की मेज पर ले गई , सारे पकवान बेटी और दामाद जी के सामने परोसा गया सब दामाद को खिलाने मे लग गए ,आशा सब देख रही थी मन ही मन खुश हो रही थी लेकिन उसे थोड़ी जलन भी हो ही थी, क्योंकि उसकी ओर कोई ध्यान ही नही दे रहा था . बाद मे उसने इस बात की शिकायत माँ से की तो माँ ने कहा दामाद जी पहली बार घर आए हैं उनका ध्यान रखना जरूरी था ना और मेरे लिए जैसे तुम और आकाश हो, वैसे ही रजत जी हैं। माँ ने आशा को छेड़ते हुए कहा कि बेटी से प्यारा दामाद होता हैं ।

कुछ दिन रहने के बाद बेटी- दामाद चले गए । आशा समय – समय पर माँ का हाल – चाल लेती रहती, लेकिन प्रिय दामाद जी ने भूलकर भी आशा के घरवालों का हाल- चाल न लेता था वो बस अपने परिवार मे ही लगा रहता था , यह सब देखकर आशा को थोड़ी तकलीफ होती थी कि जैसे उसने रजत के परिवार को अपना लिया है वैसे रजत उसके परिवार को क्यों नहीं अपना सकता । एक दिन आशा की माँ ने उसे फोन किया और पूछा दामाद जी तुझे मानते हैं ना और वो तुझसे खुुुश हैं ना ,आज अचानक माँ के बातें सुन आशा ने कहा- ऐसे क्यों पूछ रही हो क्या बात हो गई। तब आशा की माँ ने कहा नहीं तेरी शादी को पाँच साल हो गए, लेकिन रजत जी कभी हमारा हाल – चाल नहीं लेते, हमसे कोई गलती हो गई हैं क्या। माँ की बातें सुनकर आशा को आज बहुत ही तकलीफ़ हुई ।आशा ने एक दिन रजत से इस बारे मे पूछा था कि आखिर ऐसी क्या बात है कि तुम कभी भी मेेरे घरवालों से बात नहीं करते ,रजत हमेेशा यह कहकर बात टाल देता कि ऐसी कोई बात नहीं है ।

शादी को पाँच साल हो गये थे लेेकिन आशा अभी तक रजत को समझ नहीं पाई थी ,वो लाख कोशिश करती कि रजत उससे हर बात शेेेयर करे लेेेकिन रजत नहीं करता था । कभी – कभी आशाा माँ से इस बात को कहती तो माँ यही कहती कोई बात नहीं दामाद जी तुझे प्यार करते हैं ना ,बस हमें और कुछ नहीं चाहिए तु खुश समझ हम भी खुश है । दरलसल रजत का परिवार पुराने खयालों का था ,उनके यहाँ ससुराल मे बेटा दिलचस्पी ले ये उनके पिता को पसंद न था , लेकिन अपना दामाद दिलचस्पी लेता तो उन्हें अच्छा लगता था, ननदें जीजा से खुब हँसी मजाक करती . रजत ये सब देखते लेकिन उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता था क्योंकि उन्होंने अपने घर में यही सीखा था। रजत अपने पापा के लाडले थे।

आपने “mamma’s Boy’s”तो सुना होगा लेकिन यहाँ रजत “Papa’s boy the” जो उनके पिता कहते वो वहीं करते लोग अपनी सास से परेशान रहते हैं यहाँ आशा अपने ससुर से परेशान थी। ये हमारी समाज की विडंबना है कि बेटी तो पराये घर जाकर सबको अपना लेती हैं, लेकिन लड़कों को यह शिक्षा दी जाती हैं कि उसका अपना परिवार ही अपना हैं,लड़की के परिवार से क्या लेना -देना (लेना तो है ,देना कुछ नहीं)। ये मानसिकता पीढियों से चली आ रही हैं शायद यही शिक्षा और सोच रजत की थी जो उसे चाहकर भी आशा के परिवार से घुलने- मिलने से रोक रहा था। मैं ये नहीं कहुँगी की सभी एक जैसे हैं , मैंने ऐसे भी दामाद देखे हैं जो सास- ससुर को भी माँ -बाप की तरह मानते हैं ,लेकिन ऐसे लोगों की संख्या बहुत कम हैं। समय के साथ बदलाव अत्यंत आवश्यक हैं लेकिन कुछ लोग बदलाव से अपने आप को असुरक्षित महसूस करते हैं। हम बदलेंगे तभी दुनिया बदलेगी।

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” धन्यवाद”