हिंदी पर गर्व करों, शर्म नहीं

आनन – फानन में दर्द से बिलखते मैं अपनी पाँच महीने की बच्ची को लेकर हास्पिटल पहुंची और मैंने रिशेप्सन काउंटर पर खड़ी युवती से पूछा की कोई बच्चे का डाँक्टर हैं अभी, मुझे अपने बच्चे को दिखाना हैं। डू यू हैब एनी अप्वाइंटमेंट?, इफ नाँट फस्ट टेक ए अप्वाइंटमेंट. आँफ्टर दैट यू कैन गो टू द डॉक्टर। मुझे कुछ समझ नहीं आया, क्या आप हिन्दी में बता सकती हैं? तो पहले तो मेरी तरफ हेय दृष्टि से देख रिशेप्सनिस्ट खीज कर बोली – मतलब की तुमने अप्वाइंटमेंट लिया है, अगर नहीं लिया तो पहले अप्वाइंटमेंट लो फिर तुम डॉक्टर को दिखा सकती हो। मैैंने पैसे जमा करकेे अप्वाइंटमेंट लिया। मैंनेे देेेखा वहां सब एक – दूसरे से इंग्लिश में ही बात कर रहे थे, हिन्दी कोई बोल ही नहीं रहा था।
वहां जितने भी लोग थे सब मुझे ऐसे हँसते हुए घूर रहे थे जैसे सब एक जोकर को देख कर हँसते हैं। लेकिन उस समय मेरा ध्यान अपने बच्चे पर था तो उस समय वो जलालत महसूस नहीं कर पाई। जब मेरी बारी आई तो डॉक्टर के कैबिन में गई, डॉक्टर ने पूछा – वाट हैपैनड टू बेबी? पता नहीं डाँक्टर एक घंटे से लगातार रो रही हैं, मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा हैं – मैंने बोला । खैर डॉक्टर ने जब देखा की मैं हिन्दी में बात कर रही हूँ तब वो भी मुझसे हिन्दी में बात करने लगे।
डॉक्टर ने बच्चे को देखा और कहा की कुछ खास नहीं तुम्हारे बच्चे को गैस हो गया था। मैंने दवा लिख दिया हैं और इसे अभी एक बार दवाई दे दी हैं। आप इसे तीन बार पाँच मएल दे दिजिगा, नाँव यू कैन गो। मैं हड़बड़ा कर उठी और कैबिन से बाहर निकल गई। शायद दवाई के एक खुराक से मेरी बेटी को नींद आ गई और वो मेरे गोद में ही सो गई। तब मैंने चैन की साँस ली। कैबिन से बाहर निकलने के बाद मेरे साथ जो रिसेप्शन काउंटर पर हुआ वो मुझे अब जाकर समझ आया।
बाहर निकलने के बाद फिर से वही लोग मुझे देखने लगे जैसे मैंने कितना बड़ा पाप किया हो, मैं झेप गई और सोचा काश शोर्य शहर से बाहर नहीं गये होते तो मुझे ये सब नहीं झेलना पड़ता और जल्दी -जल्दी हाँस्पिटल से बाहर निकल गई। एक आँटो पकड़ा और रास्ते भर खुद को , अपने स्कूल को कोसते रही, अपने नेताओं को भी कोस दिया- क्यों बनाया हिंदी को मातृभाषा और राष्ट्र भाषा जब लोग हिंदी बोलने से कतराते हैं, कुछ लोगों की दलील है की जब कैरियर बनाने के लिए इंग्लिश भाषा जरूरी है तो हम हिन्दी क्यों बोले या क्यों पढे।
जब अपने देश में ही हिन्दी इतनी सतायी हुई हैं, सब इंग्लिश की ओर आकर्षित हो रहे हैं। आज इंग्लिश भाषा को लोग स्टेटस से जुड़ा मानते हैं, स्कूल से लेकर हर बड़े कंपनी में इंटरव्यू देना हो, हर तरफ इंग्लिश का वर्चस्व कायम हो गया हैं। दुख तो तब होता हैं जब अपने देश में हिंदी भाषा जानते हुए भी हिन्दी बोलने में शर्म महसूस करते हैं।
‘मैं इतना डर गई की कल को मेरा बच्चा भी कहीं मुझे ये न बोले की मम्मा आपको तो इंग्लिश नहीं आती’। जब मेरे पति वापस आए तो मैंने उन्हें पूरा वाकया सुनाया तो शोर्य ने मुझे शाबाशी दी और कहा मुझे तुम पर गर्व हैं जो तुम सही समय पर बच्ची को डॉक्टर के पास ले गयी और हिन्दी पर गर्व करो, शर्म नहीं। हिन्दी हमारी आत्मा में बसी है जो भाव हम अपनी भाषा में बोलकर व्यक्त कर सकते हैं, वो दूसरी भाषा में नहीं कर सकते। तब जाकर कहीं मुझे एक संतुष्टि हुई , क्या हुआ गर मुझे इंग्लिश नहीं आती, अपनी भाषा तो आती हैं ना।
दोस्तों जो सुकुन हमें प्रेमचंद, दिनकर, निराला जी को पढकर मिलती हैं वो शेक्सपियर को पढकर नहीं मिलेगी। कोई भाषा इंसान से बढकर नहीं हैं, हमारा विकास , हमारी पहचान, संस्कृति सब हिन्दी भाषा से जुड़ी हुई हैं। इसके लिए हमें गर्व होना चाहिए, शर्मिंदा नहीं।

हिन्दी हैं हम वतन हैं , हिन्दुस्ताँँ हमारा।
आप सभी को हिन्दी दिवस की ढेर सारी बधाईयाँ।✍️🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
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